🌅 ऊषा अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का हुआ समापन, व्रतियों ने मांगी सुख-समृद्धि की कामना
अमर बहादुर सिंह
बलिया/नगरा।
लोक आस्था का महान पर्व छठ मंगलवार की सुबह ऊषा अर्घ्य के साथ संपन्न हो गया। पूर्वी क्षितिज पर जब सूर्य देव अपनी लालिमा बिखेरते हुए प्रकट हुए, तो व्रतियों ने अर्घ्य देकर परिवार और समाज की सुख-समृद्धि की कामना की। घाटों पर “जय छठी मईया” और “छठ मइया की जय” के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
सुबह के समय पवित्र सरोवरों और नदी घाटों पर श्रद्धालु परिवार सहित जुटे रहे। महिलाओं ने सिर पर सुप, फल, नारियल, ठेकुआ और प्रसाद से भरे डाले लिए हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया। सूर्यदेव के दर्शन होते ही श्रद्धालुओं के चेहरे पर अलौकिक खुशी झलक उठी।
व्रतियों ने छठी मईया का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह पर्व सिर्फ उपवास नहीं, बल्कि संयम, श्रद्धा और विश्वास की पराकाष्ठा है। कई महिलाओं ने बताया कि उन्होंने जीवन का पहला छठ व्रत रखा है, जबकि कुछ वरिष्ठ व्रतियों ने कहा कि यह उनका अंतिम छठ है — अब परिवार की नई पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ाएगी।
अर्घ्य के बाद घाटों पर लोगों ने व्रतियों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। व्रतियों ने बिना भेदभाव के सबको आशीष और प्रसाद दिया। आसपास के युवाओं और सामाजिक संगठनों ने श्रद्धालुओं को चाय, शरबत और जल वितरित किया।
छठ पर्व की यही खासियत है — आस्था, एकता और सादगी का अद्भुत संगम। बिहार और पूर्वांचल का यह पर्व हमें यह सिखाता है कि उगते सूरज के साथ डूबते सूरज को भी समान श्रद्धा देनी चाहिए, क्योंकि जो अस्त होता है, उसका उदय अवश्य होता है।
भोर की उस लालिमा में जब सूर्य की किरणें जल में प्रतिबिंबित हुईं, तो मानो छठी मईया स्वयं धरती पर उतर आई हों — अपने भक्तों को आशीष देने के लिए।
जय छठी मईया!
सबका कष्ट हर लीजिए, सबके जीवन में सुख-शांति भर दीजिए।

