Monday, December 15

रांची।धर्म महासम्मेलन का समापन : आनन्द मार्गियों ने दिया धर्म और नैतिकता का संदेश

धर्म महासम्मेलन का समापन : आनन्द मार्गियों ने दिया धर्म और नैतिकता का संदेश

विनीत कुमार ,रांची, । त्रिदिवसीय आनन्द मार्ग धर्म महासम्मेलन का समापन रविवार को आध्यात्मिक उल्लास और सामाजिक संदेशों के साथ हुआ। तीसरे दिन भी देश-विदेश से आए मार्गियों का आगमन लगातार जारी रहा। सवेरे की शुरुआत भजन, कीर्तन और साधना से हुई। सुबह नौ बजे 24 घंटे से निरंतर चल रहा “बाबा नाम केवलम” कीर्तन संपन्न हुआ। इस अवसर पर आचार्य वंदनानन्द अवधूत ने कहा कि “बाबा ने जनकल्याण के लिए यह अष्टाक्षरी सिद्ध मंत्र दिया है, जिसके जप मात्र से मानसिक शांति प्राप्त होती है।” उन्होंने कहा कि श्री श्री आनन्दमूर्ति ने केवल धार्मिक संदेश ही नहीं, बल्कि शोषण से मुक्त समाज के निर्माण हेतु “प्रगतिशील उपयोग तत्व (प्रउत)” नामक नवीन सामाजिक-आर्थिक दर्शन भी दिया।

उन्होंने कहा कि बाबा का जीवन समाज सुधार के लिए समर्पित था, इसलिए उन्हें विरोध और षड्यंत्रों का सामना करना पड़ा, किंतु उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। आचार्य वंदनानन्द ने कहा कि धर्म भारतीय जीवन का प्राण तत्व है और आज के भौतिक युग में इसी धर्मबोध के क्षीण होने से समाज में भ्रष्टाचार और शोषण बढ़ा है। इसलिए आनन्द मार्गियों को धर्म साधना के साथ सामाजिक परिवर्तन हेतु जनजागरण की भूमिका निभानी चाहिए।

     दोपहर में श्री श्री आनन्दमूर्ति के प्रवचन की वीडियो क्लिप दिखाई गई जिसमें उन्होंने कहा कि “धर्म पूरी तरह एक आंतरिक प्रक्रिया है, बाहरी आडंबर से उसका कोई संबंध नहीं। परम पुरुष की अनुभूति ही धर्म का मूल तत्व है।” उन्होंने बताया कि साधना के माध्यम से मनुष्य “अहम् ब्रह्मस्मि” की अवस्था तक पहुंच सकता है, जो मानव जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है।

      इसके बाद आनन्द मार्गियों की शोभायात्रा निकाली गई, जो हाजी चौक, काठीटाड़ और तिलता चौक होते हुए पुनः कार्यक्रम स्थल पर लौटी। रैली में “मानव-मानव एक हैं”, “जात-पात की करो विदाई—मानव-मानव भाई-भाई” और “दुनिया के नैतिकवादियों एक हो” जैसे नारे गूंजते रहे। रैली में अवधूत-अवधूतिकाओं के साथ देश के विभिन्न राज्यों से आए साधक भी शामिल थे। शोभायात्रा में नागपुरी संस्कृति को प्रोत्साहन देते हुए स्थानीय परिधान में सजे बालक-बालिकाओं का दल विशेष आकर्षण का केंद्र रहा।

     रात्रि में पुनः सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ श्री श्री आनन्दमूर्ति के प्रवचन की वीडियो प्रदर्शित की गई, जिसमें उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए दृढ़ संकल्प का आह्वान किया। वीडियो के अंतिम चरण में “वराभय मुद्रा” प्रदान करते हुए बाबा का दृश्य उपस्थित जनसमूह को भावविभोर कर गया।

आचार्य वंदनानन्द ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म की पुनर्स्थापना का जो वचन दिया था, उसे आधुनिक युग में श्री श्री आनन्दमूर्ति ने पूरा किया। आनन्द मार्ग का दर्शन मानव समाज के सभी पहलुओं को छूता है और इसमें जीवन की सभी समस्याओं का समाधान निहित है।

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