
गायत्री साधना का सत्परिणाम मिलता ही है।
जो लोग अधिक कार्य व्यस्त हैं, जो अस्वस्थता या अन्य कारणों से नियमित साधना नहीं कर सकते, वे गायत्री चालीसा के 108 पाठों का अनुष्ठान कर सकते हैं। 9 दिन नित्य 12 पाठ करने से नवरात्रि में 108 पाठ पूरे हो सकते हैं। प्रायः डेढ़ घण्टे में 12 पाठ आसानी से हो जाते हैं। इसके लिए किसी प्रकार के नियम, प्रतिबन्ध, संयम, तप आदि की आवश्यकता नहीं होती।अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी समय शुद्धता पूर्वक उत्तर दिशा को मुख करके बैठना चाहिए और 12 पाठ कर लेने चाहिए। अन्तिम दिन 108 या 24 गायत्री चालीसा धार्मिक प्रकृति के व्यक्तियों में प्रसाद स्वरूप बाँट देना चाहिए।
स्त्रियाँ, बच्चे, रोगी, वृद्ध पुरुष तथा अव्यवस्थित दिनचर्या वाले कार्य-व्यस्त लोग इस गायत्री चालीसा के अनुष्ठान को बड़ी आसानी से कर सकते हैं। यों तो गायत्री उपासना सदा ही कल्याणकारक होती है, पर नवरात्रि में उसका फल विशेष होता है। गायत्री को भू-लोक की कामधेनु कहा गया है। यह आत्मा की समस्त क्षुधा पिपासाओं को शान्त करती है। जन्म मृत्यु के चक्र से छुड़ाने की सामर्थ्य से परिपूर्ण होने के कारण उसे अमृत भी कहते हैं।
गायत्री का स्पर्श करने वाला व्यक्ति कुछ से कुछ हो जाता है। इसलिए उसे पारसमणि भी कहते हैं। अभाव, कष्ट, विपत्ति, चिन्ता, शोक एवं निराशा की घड़ियों में गायत्री का आश्रय लेने से तुरन्त शान्ति मिलती है। माता की कृपा प्राप्त होने से पर्वत के समान दीखने वाले संकट राई के समान हलके हो जाते हैं और अन्धकार में भी आशा की किरणें प्रकाशमान होती हैं।गायत्री को शक्तिमान, सर्वसिद्धिदायिनी सर्व कष्टनिवारिणी कहा गया है। इससे सरल, सुगम, हानिरहित, परमसाध्य एवं शीघ्र फलदायिनी साधना और कोई नहीं है। इतना निश्चित है कि कभी किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती। अभीष्ट अभिलाषा की पूर्ति में कोई कर्म फल विशेष बाधक हो, तो भी किसी न किसी रूप में गायत्री साधना का सत्परिणाम साधक को मिलकर रहता है। उलटा या हानिकारक परिणाम होने की तो गायत्री साधना में कभी कोई सम्भावना ही नहीं है। यों तो गायत्री साधना सदा ही कल्याणकारक होती है, पर नवरात्रि में तो यह उपासना विशेष रूप से श्रेयष्कर होती है। इसलिए श्रद्धापूर्वक अथवा परीक्षा एवं प्रयोग रूप में ही सही-उसे अपनाने के लिए हम प्रेमी पाठकों से अनुरोध करते रहते हैं। गायत्री साधना के सत्य परिणामों पर हमारा अटूट विश्वास है। जिन व्यक्तियों ने भी यदि श्रद्धापूर्वक माता का आंचल पकड़ा है, उन्हें हमारी ही भाँति अटूट विश्वास प्राप्त होता है।
— पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
(संकलित व सम्पादित) (सोशल मीडिया से )
अखण्ड ज्योति मार्च 1996

