Thursday, December 18

भदोही।जयगुरुदेव आश्रम पर जुटे प्रेमी,विधिवत मनाई गुरुपूर्णिमा।

जयगुरुदेव आश्रम पर जुटे प्रेमी,विधिवत मनाई गुरुपूर्णिमा।

शरद बिंद/ भदोही।

भदोही जिले में गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर विभिन्न स्थानों से आए सत्संगी प्रेमियों ने जयगुरुदेव आश्रम चकपड़ौना पर गुरु महाराज का विधिवत पूजन,सत्संग व उसके उपरांत भोजन प्रसाद वितरण किया।जनपद के सत्संगी प्रेमी प्रातः ही आश्रम पहुंचकर प्रांगण में स्थित मंदिर की साफ-सफाई में लग गए ततपश्चात प्रेमियों के एकत्रीकरण पर संस्थाध्यक्ष श्रद्धेय पंकज जी महाराज के निर्देशानुसार शब्द स्वरूप परम् संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की अमरवाणियों को सत्संगी जनों को सुनाया गया और उसे जीवन में अनुकरण करने हेतु कहा गया।जनपद अध्यक्ष श्री प्रेमशंकर मौर्य के मथुरा कार्यक्रम में जाने के कारण कार्यक्रम का संयोजन जगन्नाथ मौर्य और जयकुमार ने किया।उपस्थित प्रेमियों को डॉ.विजय श्रीवास्तव ने सम्बोधित करते हुए बताया कि-

गुरु पूर्णिमा के पर्व का आदिकाल से ही महात्म्य रहा है इसी पुनीत दिन आदिगुरु परमेश्वर शिव ने ऋषिमुनियों को शिवज्ञान प्रदान किया था व महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था।

     गुरु शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है – अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना। गुरु के महात्म्य को ऋषि मुनियों ने वर्णित किया है-

चिंतामणिर्लोकसुखं सुरद्रु: स्वर्गसम्पदम्।

प्रयच्छति गुरु: प्रीतो वैकुण्ठं योगिदुर्लभम्।।

अर्थात किसी व्यक्ति को चिंतामणि मिल जाए तो स्वर्ग के सभी सुख मिल जाते हैं, पर यदि गुरु प्राप्त हो जाए तो उसे वैकुंठ प्राप्त हो जाता है, जो योगियों को भी दुर्लभ है।

रामचरितमानस में गोस्वामीजी ने भी कहा है-

गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई।

जौ बिरंचि संकर सम होई।।

अर्थात गुरु के बिना कोई भवसागर नहीं तर सकता, चाहे वह ब्रह्मा जी और शंकर जी के समान ही क्यों न हो। जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो, दुखों का शमन हो जाए तथा परब्रह्म अर्थात स्वयं के स्वरूप की अनुभूति हो जाए, ऐसा ज्ञान गुरु कृपा से ही प्राप्त हो सकता है। इसीलिए कहा जाता है कि-

“ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति: पूजामूलं गुरो: पदम्,मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा”

गुरु जीव को सांसारिक माया,मोह के बंधनों मुक्त कर मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं;चराचर जगत में दो प्रकार की विद्याएं हैं-परा विद्या और अपरा विद्या। इन्हें ही उपनिषदों में श्रेय तथा प्रेय के नाम से जानते हैं। जो परा-अपरा विद्या का ज्ञान कराकर शिष्य को मोक्ष प्राप्त करा दे, ऐसा महान गुरु दुर्लभ है यदि ऐसा गुरु प्राप्त हो जावे तो जीव 84 लाख योनियों के जंजाल से मुक्त हो जावे इसलिए पूर्ण और समर्थ गुरु की तलाश करना ही मानव जीवन का उद्देश्य होना चाहिए और गुरु मिलने पर गुरु के बताए रास्ते पर चलकर भवसागर से पार पा लेने में ही मनुष्य जन्म प्राप्त करने की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।सत्संग कार्यक्रम के दौरान कई प्रेमीजन उपस्थित रहे जिनमें छोटेलाल कैशियर,इंद्रजीत,बबलू यादव,डॉ कृपा,जगदीश चन्द्र श्रीवास्तव,अंकित मालवीय,शंकर,अभिनन्दन,कृतिका,निधि आदि रहे।

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