लखनऊ में एकाना स्टेडियम क्षेत्र में पार्किंग निर्माण अटका, ट्रैफिक जाम से आमजन परेशान—जनहित याचिका ही एकमात्र उपाय।
उपेन्द्र कुमार पांडेय
लखनऊ। राजधानी में करोड़ों की लागत से बने एकाना स्टेडियम को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली, लेकिन नागरिक सुविधाओं की दृष्टि से स्थिति बेहद चिंताजनक है। हर बड़े क्रिकेट मैच या इवेंट के दौरान शहीद पथ से लेकर आस-पास की कॉलोनियों तक घंटों लम्बा जाम लग जाता है। लोग बच्चों और बुज़ुर्गों के साथ फँसे रहते हैं, एम्बुलेंस तक रुक जाती है, और पुलिस बेबस नज़र आती है। यह किसी छोटे शहर का दृश्य नहीं, बल्कि राजधानी लखनऊ की हकीकत है। सवाल उठता है—स्टेडियम बनाया गया, लेकिन पार्किंग क्यों नहीं? और अगर पार्किंग की योजना थी, तो निर्माण क्यों अधर में लटका है?

स्थानीय निवासियों का आक्रोश अब असहायता में बदल चुका है। कई वर्षों से “जल्द निर्माण होगा” का आश्वासन दिया जाता रहा, लेकिन आज तक नतीजा शून्य। प्राधिकरण, प्रशासन और आयोजकों की लापरवाही का खामियाज़ा आम जनता भुगत रही है। जिस स्टेडियम को आधुनिकता का प्रतीक बताया गया, वही आज शहर की यातायात व्यवस्था का सबसे बड़ा बोझ बन चुका है। यह स्थिति केवल प्रशासनिक उदासीनता नहीं, बल्कि सार्वजनिक संसाधनों की योजना में गंभीर खामी का परिणाम है।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल—क्या किसी भी बड़े प्रोजेक्ट की स्वीकृति बिना सार्वजनिक सुविधा पूरी किए दे दी जाती है? क्या सार्वजनिक सुरक्षा और यातायात व्यवस्था की कोई जवाबदेही नहीं? बार-बार शिकायतों, समाचारों और विरोध के बावजूद पार्किंग निर्माण आगे क्यों नहीं बढ़ रहा? यह चुप्पी संदेह पैदा करती है। जब करोड़ों की परियोजना का लाभ जनता को नहीं मिलता और परेशानी बढ़ती है, तब लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्याय पाने के लिए अदालत ही अंतिम दरवाज़ा बचती है।
इसलिए अब समय आ गया है कि नागरिक केवल इंतज़ार न करें, बल्कि जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल कर इस लापरवाही को चुनौती दें। न्यायालय से निर्देश माँगा जाना चाहिए कि पार्किंग निर्माण तत्काल पूरा किया जाए, समयसीमा तय हो, और हर मैच से पहले वैकल्पिक व्यवस्थित पार्किंग अनिवार्य हो। जब प्रशासन सुनने को तैयार न हो, और जनता रोज़ पीड़ा झेले, तब अदालत में दस्तक ही लोकतांत्रिक अधिकार नहीं, कर्तव्य बन जाती है। शहर की सड़कों पर रोज़ाना होने वाली यह अव्यवस्था महज़ यातायात समस्या नहीं, बल्कि जनता के साथ अन्याय है—और इस अन्याय के खिलाफ स्वर बुलंद करना अब ज़रूरी है।
शिखर
अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ।

