
बरेली के न्यायाधीश रवि दिवाकर की सांप्रदायिक टिप्पड़ी पर कांग्रेस ने मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायलय को भेजा ज्ञापन
विवादित डिप्पडियो के बाद भी न्यायाधीश की कुर्सी पर बना रहना न्यायिक प्रक्रिया का अपमान
शाहजहांपुर / उत्तर प्रदेश के जनपद बरेली अपर जिला जज रवि दिवाकर द्वारा धारा 376 (2) एन एवं 504 के वाद में, गरिमा के विपरित सांप्रदायिक टिप्पणी करने के मामले में जनपद शाहजहांपुर की अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रकोष्ठ ने विरोध जताते हुए मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली के नाम प्रेषित एक ज्ञापन जिला प्रशासन को सौंपा जिसमे उन्होंने कहा की इससे पूर्व भी उपरोक्त न्यायाधीश द्वारा मुस्लिम धर्म के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया से अलग हट कर अभद्र टिप्पड़ी करते आए है दिए गए ज्ञापन में न्यायाधीश रवि दिवाकर पर कार्यवाही की मांग की गई है ।
दिए गए ज्ञापन में अल्पांख्यक प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष सईद अंसारी ने कहा है की पिछले वर्षों से न्यायाधीश रवि दिवाकर विवादास्पद टिप्पणी कर रहे हैं। नवीनतम वाद- अंतर धार्मिक विवाह में मुस्लिम पुरूष अलीम को भारतीय दंड सहिंता की धारा 376 (2) एन एवं उसके पिता साबिर को आईपीसी की धारा 504 के तहत बरेली के न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने 30 सितंबर 2024 को अपने 42- पृष्ठ के दोषसिद्धि फैसले में आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए कहा कि यह लव जिहाद का मामला था। हालाकि मुस्लिम व्यक्ति, मोहम्मद आलिम और उसके पिता के खिलाफ आपराधिक मामले में गैरकानूनी धर्मांतरण के आरोप शामिल नहीं थे, परंतु जज दिवाकर ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह “लव जिहाद के माध्यम से गैरकानूनी धर्मांतरण का मामला” है और राज्य के कड़े धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत आरोप नही लगाने के लिए पुलिस की आलोचना की।अदालत में गवाही देते समय लड़की ने कहा कि एफ आई आर और मजिस्ट्रेट के सामने उसके द्वारा दर्ज बयान, उसने अपने माता-पिता और हिंदू चरमपंथी समूहों के दबाव में दिया था। लेकिन जज दिवाकर ने उसके बयान को खारिज कर दिया। दिवाकर ने कोर्ट रजिस्ट्रार को अपने फैसले की एक कॉपी पुलिस अधीक्षक बरेली को भेजने का भी निर्देश दिया ताकि सभी पुलिस स्टेशनों को सचेत किया जा सके कि “जब भी अंतरधार्मिक विवाह (लव जिहाद) का मामला हो तो कानून की अन्य प्रासंगिक धाराओं के अलावा, पुलिस को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत भी कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए जबकि 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा धर्मांतरण पर बनाये गए कानून में कहीं पर भी ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल ही नहीं हुआ है तो जज अपने फैसले में ये शब्द कैसे इस्तेमाल कर सकता है।दिवाकर ने कहा कि फैसले की प्रति यूपी के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और गृह सचिव को भेजी जाएं ताकि वे राज्य में गैरकानूनी धर्मांतरण कानून का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करें। कांग्रेस जनों ने न्यायधीश दिवाकर द्वारा की गई टिप्पड़ियो के के विषय में बताते हुए कहा की विवादों में रहने वाले दिवाकर ने 200 का निरागसी में एक न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद के संबंध में विवादास्पद निर्देश पारित किए थे
न्यायाधीश दिवाकर ने 2024 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आधुनिक समय के ‘दार्शनिक राजा’ के रूप में सम्मानित करने और देश में सांप्रदायिक दंगों के लिए राजनीतिक दलों को मुसलमानों के ‘तुष्टीकरण’ का दोषी ठहराया था। बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस टिप्पणी को हटा दिया, जिसमें कहा गया। कि उनकी टिप्पणियाँ “अनुचित अभिव्यक्तियों थीं जिनमें राजनीतिक रंग और व्यक्तिगत विचार शामिल थे। न्यायिक अधिकारी किसी धार्मिक पद पर नहीं, बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यवस्था के जज हैं जिसका कोई अधिकृत धर्म नहीं है। इसलिए धर्मांतरण से जुड़े वाद की सुनवाई में न्यायाधीश की ज़िम्मेदारी यह देखने तक ही है कि कोई जबरन या किसी की इच्छा के विरुद्ध तो धर्म परिवर्तन नहीं करा रहा है। अतीत में कई गई न्यायाधीश दिवाकर की टिप्पणी को उच्च न्यायालय द्वारा हटाने के उपरांत भी, टिप्पणियों की पुनरावृति न्यायाधीश की गरिमा के विपरीत और संवैधानिक नज़रिए से आपत्तिजनक है।ज्ञापन देने वालो में मुख्य रूप से सईद अन्सारी मो० ज़ैद अन्सारी एहसन तहसीम अहमद उस्मान दिलशाद अली महानगर सचिव अफजल मो० सलीम इदरीसी अशरफ अकबर अली मोहम्मद दानिश शेख डा. जाने आलम खान आदि लोग शामिल रहे।

