“स्वस्थ नारी–सशक्त परिवार अभियान में उठे सवाल: एनीमिया पर क्यों नहीं थम रही जकड़?”
अमर बहादुर सिंह बलिया शहर
बलिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस 17 सितम्बर से लेकर महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर तक पूरे देश में “स्वस्थ नारी–सशक्त परिवार अभियान एवं पोषण अभियान” धूमधाम से संपन्न हुआ। इस अभियान के दौरान स्वास्थ्य विभाग की ओर से हाइपरटेंशन, मधुमेह, कैंसर, टी.बी., टीकाकरण, हीमोग्लोबिन, ब्लड डोनेशन, आभा कार्ड, आयुष्मान कार्ड, माइनर सर्जरी, किशोर-किशोरी परामर्श सेवा और सीकल सेल जैसी गंभीर बीमारियों की जांच एवं उपचार संबंधी कार्य किए गए।
हालांकि, अभियान की सफलता के बीच एक बड़ा सवाल भी खड़ा हो गया है। सर्वे रिपोर्ट बताती है कि भारत में 15% पुरुष और 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 57% महिलाएं एनीमिया (अति रक्त अल्पता) से पीड़ित हैं। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि स्वास्थ्य विभाग और बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल खड़ा करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्वास्थ्य विभाग गर्भवती महिलाओं और बच्चों को समय से आयरन व फोलिक एसिड की गोली उपलब्ध कराता और बाल विकास विभाग पौष्टिक आहार का शत-प्रतिशत वितरण सुनिश्चित करता तो एनीमिया की स्थिति इस स्तर तक भयावह न होती।
एनीमिया का सीधा असर देश की कार्यक्षमता और आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगी तो भारत में समय से पहले बुढ़ापा दस्तक दे देगा और राष्ट्र की ताकत कमजोर हो जाएगी, जिसका सीधा असर राष्ट्रीय विकास यात्रा पर पड़ेगा।
जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सरकार को चेतावनी दी है कि यह केवल अभियान चलाने से नहीं, बल्कि विभागीय जवाबदेही और वास्तविक क्रियान्वयन से ही बदलेगा। इसके लिए आवश्यक है कि स्वास्थ्य और पुष्टाहार विभाग के सचिव स्तर से लेकर जिला स्तर तक अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा, सत्यापन, मूल्यांकन एवं मासिक अन्वेषण अनिवार्य किया जाए।
अभियान के माध्यम से जागरूकता और चिकित्सा सुविधाएं भले ही जनता तक पहुंचीं हों, लेकिन एनीमिया जैसे मूलभूत स्वास्थ्य संकट की वास्तविक तस्वीर सामने आने से अब सरकार को विभागीय कार्यप्रणाली पर सख्त निगरानी रखनी होगी। अन्यथा “स्वस्थ नारी–सशक्त परिवार” का सपना अधूरा ही रह जाएगा।

