प्रभु श्री राम निकल पड़े वनवास पर , सपूर्णखा की नाक कटी
शरद बिंद/भदोही
*भदोही,दुर्गागंज।* अभोली ब्लॉक के मतेथू गांव में स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर पर जय बजरंग रामलीला समिति द्वारा आयोजित रामलीला के छठवें दिन रविवार को राम वन गमन,भरत मनावन,खर्दूषण वध और सपूर्णखा के नाक काटने का मंचन किया गया। मंचन की शुरुआत में राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ से भगवान राम के राज्याभिषेक की इच्छा व्यक्त की। मुनि वशिष्ठ ने इसे उचित समय बताया, जिसके बाद महाराज दशरथ ने मंत्री सुमंत्र से पूरे राज्य में राम के राजा बनने की घोषणा करवा दी।
यह जानकारी मिलने पर मंथरा ने कैकेयी को राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांगने के लिए उकसाया। कैकेयी ने भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा। दशरथ यह सुनकर मूर्छित हो गए, लेकिन अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने कैकेयी को दोनों वरदान दे दिए।
भगवान राम के वन गमन के लिए प्रस्थान करने पर राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए। इसके बाद राम और निषादराज के मिलन का दृश्य प्रस्तुत किया गया।
मंचन के अंतिम चरण में राम और केवट के संवाद का प्रसंग दिखाया गया। इस दौरान उपस्थित दर्शकों ने जय श्री राम के नारे लगाए। लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक काटने की लीला का मंचन किया। कथा व्यास ने बताया की गंगा नदी पार करने के बाद घने दंडक वनों में घूम रहे श्री राम, सीता व लक्ष्मण को देखकर रावण की बहिन सूर्पनखा राम के रूप पर मोहित हो जाती है एवं श्री राम से जाकर प्रणय निवेदन करती है। प्रभु श्री राम पत्नीव्रता होने की बात कहकर उसके निवेदन को ठुकरा देते हैं। इसके बाद सूर्पनखा को लक्ष्मण से भी यही जवाब मिलता हैं।
दोनों भाइयों द्वारा प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद क्रोधित होकर सूर्पनखा माता सीता की जान लेने का प्रयास करती हैं, जिससे उसके दुस्साहस पर प्रभु श्री राम क्रोधित हो जाते हैं। साथ ही उसकी नाक काटने का आदेश लक्ष्मण को देते हैं। नाक कटने के बाद विलाप करती हुई सूर्पनखा अपने भाई लंकेश रावण के दरबार में पहुंच जाती हैं। अपनी बहिन के साथ हुई घटना से रावण क्रोधित हो जाता हैं। जिसके बाद रावण के भेजे राक्षस खर और दूषण उसका बदला लेने आते है जो राम-लक्ष्मण के तीरों से मारे जाते है।
इस मौके पर आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रेमशंकर पाठक,गौरव तिवारी,सुनील कुमार सिंह,नागेंद्र बहादुर सिंह,अभिषेक कुमार पांडेय आदि मौजूद रहे।

