
ड्रैगन फ्रूट में औषधीय गुण स्वास्थ्य के लाभदायक होने के साथ किसान के लिए अच्छी आय का स्रोत भी : सीडीओ
उधान विभाग द्वारा सीडीओ की अध्यक्षता में ड्रैगन फ्रूट खेती के संबंध में आयोजित कराई गई कार्यशाला
शाहजहांपुर / जनपद के उधान विभाग द्वारा गांधी भवन में ड्रैगन फ्रूट की खेती के संबंध में एक कार्यशाला का आयोजन मुख्य विकास अधिकारी डाक्टर अपराजिता सिंह की अध्यक्षता में किया गया जिसमे भारी आंखे जनपद के किसानो ने भाग लिया इस दौरान जनपद के कृषि विभाग कर अधिकारियो के सहित बरेली जनपद के वरिष्ठ कृषि अधिकारी मौजूद रहे अपने संबोधन में किसानों से बात करते हुए मुख्य विकास अधिकारी ने ड्रैगन फ्रूट के गुण बताते हुए कहा की यह एक बेहतरीन फल होने के साथ औषधीय होने के कारण स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है जिसके सेवन से कई प्रकार की बीमारियो से बचा जा सकता है जैसे यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी वैसे ही किसान के लिए यह काम जमीन और काम लागत में किसानो की एक बड़ी आय का स्रोत बन सकता है ।
वही ड्रैगन फ्रूट के विषय में बताते हुए कृषि उपनिदेशक धीरेंद्र सिंह ने बताया की जिन क्षेत्रों में तापमान न ज्यादा हो या कम, यानी कि बीच-बीच के तापमान वाले इलाके में ड्रैगन फ्रूट की खेती अच्छी होती है. इसके लिए बरसात का भी ध्यान रखना होता है। जिन क्षेत्रों में 500 मिमी से 2000 मिमी तक बारिश होती है, वहां ड्रैगन फ्रूट उगाना फायदे का सौदा साबित होगा। इतने रेंज की बरसात ड्रैगन फ्रूट के पौधे को बढ़ने और सही फल आने में मदद करेगी। इसके लिए तापमान 20 से 30 डिग्री उपयुक्त माना जाता है। इसकी रोपाई के लिए फरवरी से मई महीने को सबसे अच्छा माना जाता है। क्षेत्र का तापमान अधिक जा रहा हो तो पॉलीहाउस लगाकर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सकते हैं।
जिला उधान अधिकारी पुनीत कुमार पाठक ने जानकारी देते हुए बताया की ड्रैगन फ्रूट के साथ सबसे खास बात ये है कि इसे कम उपजाऊ जमीन में भी रोप सकते हैं और अच्छी पैदावार ले सकते हैं. इसके पौधे अप्रैल-जुलाई में रोपे जाते हैं. किसान इसकी पौध को अपने जिले के कृषि केंद्र से खरीद सकते हैं. आत्मा योजना के अंतर्गत इस फसल को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ड्रैगन फ्रूट की पौध वितरित की जाती है. किसान इस योजना का लाभ लेकर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सकते हैं। उन्होंने बताया की किसी तरह की मिट्टी में ड्रैगन फ्रूट उगाया जा सकता है।लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए गड्ढे खोदकर कंक्रीट के बने खंभे गाड़े जाते हैं। दो खंभों के बीच की दूरी लगभग 5 हाथ होनी चाहिए। इसके बाद खंभे से सटाकर चार पौधे रोप दिए जाते हैं। रोपाई के समय ही पौधे में हल्का पानी दे दिया जाता है। फिर ड्रिप सिंचाई पद्धति से समय-समय पर पौधों को पानी दिया जाता है।पौधों में हर महीने गोबर का खाद डालना अच्छा रहता है। किसान चाहें तो रासायनिक खाद भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अच्छी पैदावार चाहिए तो पौधे के आसपास उगे खरपतवार को हटाते रहना चाहिए। लगभग 8 महीने बाद पौधे खंभे के बराबर हो जाते हैं। 16 महीने बाद पौधों पर छोटे फल आने शुरू हो जाते हैं। हालांकि पहले कलियां आती हैं जिसके बाद फल दिखने लगते हैं। 18 महीने बाद फल का रंग पूरी तरह से गुलाबी हो जाता है जिसे तोड़ लेना चाहिए। अब यह फल बिक्री के लिए तैयार है।कार्यक्रम के दौरान जनपद की मुख्य विकास अधिकारी डाक्टर अपराजिता सिंह कृषि उप निदेशक धीरेंद्र सिंह जिला कृषि अधिकारी विकास किशोर जिला कृषि रक्षा अधिकारी संजय कुमार यादव जिला गन्ना अधिकारी जितेंद्र कुमार मिश्रा जिला उधान अधिकारी पुनीत कुमार पाठक गंगा समिति राकेश पांडेय सहित अन्य किसान मौजूद रहे ।

