Tuesday, December 16

भदोही।अनुदेशकों को मिली न्याय की आस: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया, सरकार को लगाई कड़ी फटकार।

अनुदेशकों को मिली न्याय की आस: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया, सरकार को लगाई कड़ी फटकार।

शरद बिंद/ भदोही।

उत्तर प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में तैनात लगभग 25,000 अनुदेशकों के लंबे संघर्ष को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने की उम्मीद जगी है। 16 सितंबर को हुई सुनवाई में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लंबी बहस के बाद अनुदेशकों के पक्ष में फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि “योजनाएं गिनाने आए हो?” और तीखे सवालों की झड़ी लगा दी। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वारले की बेंच ने राज्य सरकार से पूछा, “जब पढ़ेगा इंडिया, तभी तो बढ़ेगा इंडिया। आपको मानदेय देने में क्या दिक्कत है?” इस पर सरकार के वकील ने कोर्ट के सुझाव पर सहमति जताई।

यह मामला 2017 का है, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुदेशकों का मानदेय 9,000 रुपये से बढ़ाकर 17,000 रुपये करने की घोषणा की थी। लेकिन यह वादा कागजों पर ही रह गया। आर्थिक तंगी से जूझ रहे अनुदेशकों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और डबल बेंच ने भी इसे बरकरार रखा। फिर भी सरकार ने बढ़ा हुआ मानदेय नहीं दिया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर दी। अनुदेशकों ने भी अपना रिट पिटीशन दायर किया। तीन साल से चली आ रही इस कानूनी लड़ाई में अनुदेशक परिवारों के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा को भी नुकसान पहुंच रहा है।

16 सितंबर की सुनवाई में अनुदेशकों की ओर से वरिष्ठ वकील पी.एस. पटवालिया और आर.के. सिंह ने करीब 45 मिनट तक तर्कपूर्ण बहस की। उन्होंने बताया कि अनुदेशक न केवल कक्षा संभालते हैं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा क्रांति ला रहे हैं। लेकिन अल्प मानदेय के कारण वे आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। पटवालिया ने कहा, “ये शिक्षक आने वाली पीढ़ी का भविष्य संवारते हैं, फिर भी सरकार उन्हें उपेक्षित कर रही है।” दूसरी ओर, सरकारी वकील ने विभिन्न योजनाओं का हवाला दिया, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। जस्टिस मित्तल ने फरमाया, “शिक्षा पर इतना खर्चा करने वाली सरकार को यह छोटी सी राशि क्यों नहीं देनी?” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिक्षा का अधिकार मौलिक है और राज्य का दायित्व है कि शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन मिले।

अनुदेशक संगठनों ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया। विक्रम सिंह, अनुदेशक कल्याण संघ के संयोजक ने कहा, “भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। माननीय सुप्रीम कोर्ट और सभी सहयोगी साथियों का आभार।” उन्होंने दिलीप सिंह का भी जिक्र किया, जो इस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे हैं। दिलीप सिंह ने लंबे समय से अनुदेशकों के हक की लड़ाई लड़ते हुए कई धरना-प्रदर्शन आयोजित किए। विक्रम सिंह ने बताया कि संगठन ने कोर्ट में मजबूत साक्ष्य पेश किए, जिसमें महंगाई के आंकड़े और शिक्षकों की आर्थिक स्थिति शामिल थे। “हमारी जीत निश्चित है, क्योंकि न्याय हमारे साथ है,” उन्होंने जोड़ा।

यह फैसला न केवल अनुदेशकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि पूरे देश के संविदा शिक्षकों को प्रेरणा देगा। उत्तर प्रदेश में लाखों बच्चे इन अनुदेशकों पर निर्भर हैं। अगर फैसला पक्ष में आया, तो 25,000 परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट शिक्षा के क्षेत्र में राज्य की लापरवाही पर सख्ती बरत रहा है। हाल ही में गुजरात के कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों के वेतन मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने समानता का हवाला देते हुए फैसला दिया था।

अनुदेशक संगठन अब फैसले का इंतजार कर रहे हैं। विक्रम सिंह ने अपील की कि सरकार कोर्ट के फैसले का सम्मान करे और तुरंत भुगतान शुरू करे। “हम शिक्षा के सिपाही हैं, हमें हथियार न दें,” उन्होंने कहा। यह संघर्ष शिक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करता है, जहां शिक्षक खुद शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला नई दिशा देगा।

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