Monday, December 15

जौनपुर।डॉ शरतेंदु ने किया वाल्मीकि रामायण का ऐतिहासिक पद्यानुवाद, 87 वर्ष की उम्र में रचा नया कीर्तिमान।

डॉ शरतेंदु ने किया वाल्मीकि रामायण का ऐतिहासिक पद्यानुवाद, 87 वर्ष की उम्र में रचा नया कीर्तिमान।

 जौनपुर।जिले के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद डॉ सत्य नारायण दुबे ‘शरतेंदु’ ने 87 वर्ष की अवस्था में वाल्मीकि रामायण का सरल हिंदी पद्यानुवाद कर एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की है। डॉ शरतेंदु ने अपने सात वर्षों के अथक परिश्रम से संपूर्ण रामायण का पद्यानुवाद पूर्ण किया है, जिसे अब प्रकाशित भी किया जा चुका है। यह कार्य न केवल जनपद, बल्कि पूरे प्रदेश और राष्ट्र के लिए गौरव का विषय बन गया है।

डॉ शरतेंदु, मड़ियाहूं तहसील के ददरा गांव के निवासी हैं। वे शिक्षा, साहित्य और समाजसेवा के क्षेत्र में पिछले पाँच दशकों से सक्रिय हैं। उन्होंने दुर्गा सप्तशती, गीता और अब वाल्मीकि रामायण का सरस पद्यानुवाद कर पाठकों को धर्म, दर्शन और भारतीय संस्कृति से जोड़ा है।

पूर्वांचल विश्वविद्यालय के डीन प्रो. अजय कुमार दुबे ने बताया कि प्रारंभ में डॉ शरतेंदु केवल सुंदरकांड का ही पद्यानुवाद करना चाहते थे, किंतु प्रभु श्रीराम की कृपा से उनका कार्य आगे बढ़ा और संपूर्ण रामायण का पद्यानुवाद पूर्ण हुआ।

गांधी स्मारक पीजी कॉलेज समोधपुर में बीएड विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यरत रहे डॉ शरतेंदु बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। इतिहास, राजनीति शास्त्र और हिंदी जैसे विषयों पर भी उन्होंने न केवल अध्यापन किया बल्कि अनेक पाठ्य पुस्तकें भी तैयार कीं। उनकी 300 से अधिक कृतियाँ—कहानी, उपन्यास, कविता और शैक्षणिक साहित्य—जनसामान्य और शिक्षाविदों के बीच लोकप्रिय हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त डॉ शरतेंदु को फिराक गोरखपुरी, हरिवंश राय बच्चन, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, जैसे महान साहित्यकारों से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।

उनकी साहित्यिक सेवाओं को राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है।

उन्हें अब तक के पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं जिनमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने भारत भूमि महाकाव्य का विमोचन कर उन्हें सम्मानित किया।तालकटोरा स्टेडियम, नई दिल्ली में भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और विशिष्ट सेवा सम्मान से अलंकृत किया गया।जय स्वतंत्र भारत काव्य पर पूर्व राज्यपाल श्री माता प्रसाद ने विशेष सम्मान प्रदान किया।

राम चरिततम पर सर्वेश्वरी समूह ने पुरस्कार प्रदान किया।

लोक साहित्य की रूपरेखा पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा रामनरेश त्रिपाठी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ शरतेंदु 1 जुलाई 1964 से 30 जून 1999 तक सेवा में रहे और सेवानिवृत्ति के बाद भी पूरी तरह लेखन को समर्पित हैं। वे आज भी प्रतिदिन 8 से 10 घंटे लेखन में लीन रहते हैं, प्रचार-प्रसार से दूर रहकर मौन साधना के रूप में साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

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