
आजमगढ़ । काकोरी एक्शन शताब्दी वर्ष पर शहीदों की याद में गोष्ठी का हुआ आयोजन ।
आजमगढ़। जमीन मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा खिरिया बाग के तत्वाधान में काकोरी एक्शन शताब्दी वर्ष पर धरना स्थल पर विचार गोष्ठी आयोजित हुआ । वक्ताओं ने कहा कि काकोरी एक्शन के क्रांतिकारी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां,राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी व रोशन सिंह स्वतंत्रता संग्राम के वो चमकते सितारे हैं जो आज भी जनता को समानता, भाईचारे, अधिकारों के लिए और धर्म के नाम पर नफरत का उन्माद फैलाये जाने के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणा देते हैं। इन शहीदों ने अंग्रेजों से देश को मुक्त कराने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। लेकिन शासक वर्ग द्वारा धर्म -जाति के नफरत उन उन्माद खड़ा करके उन शहीदों के सपने को मिटाने की कोशिश की जा रही है। पक्ष-विपक्ष की सभी पार्टियां धर्म से जुड़े प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। कहीं से भी धर्म के नाम पर राष्ट्र बनाने का विरोध नहीं करते। जो विरोध दिखता भी है वह केवल दिखावे का ही है।असल में, एक मामले में यानी बड़े देशी विदेशी पूंजीपतियों की सेवा करने में, ये सभी पार्टियां लगभग एक-सी हैं। इनके तौर तरीकों और बातों में ही थोड़ा फर्क है। इन पार्टियों के नेता घोर मौकापरस्त हैं भ्रष्ट है। कभी इस पार्टी में तो कभी उस पार्टी में। पहले सपा या कांग्रेस में तो अब भाजपा में या फिर इसका उल्टा। जहां से भी सत्ता में घुसने का मौका मिले, दौलत बटोरने को मिले, ये वहीं पहुंच जाते हैं।
भाजपा तो वैसे भी वाशिंग मशीन कहलाती है। ये, जिस विपक्षी पार्टी के नेता पर दिन रात भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और फिर ई डी, सी बी आई को इनके पीछे दौड़ाते हैं मगर जब वहीं भ्रष्ट नेता, भाजपा में पहुंचता है तो उसके सारे दाग धब्बे पुल जाते हैं और वह पवित्र आत्मा बन जाता है।मगर इसी दौर में, ठीक दूसरी ओर पेपर लीक के खिलाफ आंदोलन करते और रोजगार की मांग करते नौजवानों पर इनके हिंदू राष्ट्र का डंडा बरसता है। फैक्ट्री में आंदोलन करते मजदूरों नियमितिकरण की मांग करते संविदा कर्मियों और वेतन बढ़ाने की मांग करती भोजनमाताओं, आशा वर्करों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर भी यही हिंदू राष्ट्र का डंडा बरसता है।
कोई तो बत्ताए कि कैसे, हिंदू मजदूर और मुस्लिम मजदूर अलग- अलग है जबकि दोनो ही अपनी मेहनत (श्रम) मालिक को बेचते हैं। या कहीं नौकरी करते हैं। दोनों की ही पहचान मजदूर की है। दोनों ही दिन रात खटते हैं तब घर परिवार चलता है। मेहनत (श्रम) के बिना इंसान, इंसान नहीं रह सकता। यदि श्रम ना हो तो पूरी मानव सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी। यही असल सवाल है यही असल पहचान हैं। यहां कोई मजदूर हैं. कोई किसान है, कोई दुकानदार है, कोई छात्र हैं तो कोई ड्राइवर है शिक्षक है या फिर डाक्टर या नसें। इसी तरह और भी। मगर इस असल पहचान को धर्म के नाम पर गायब किया जा रहा है और वो हिंदू है, यो मुस्लिम है, वो सिख है इस बात को हर जगह उछाला जा रहा है। एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करके और नफरत परोसकर हिंसक बनाया जा रहा है।
ऐसे में जरूरी है कि अपने असल सवाल और असल पहचान के साथ एकजुट हुआ जाय। काकोरी के शहीदों की साझी शहादत – साझी विरासत की सोच को स्थापित किया जाय। धर्म को निजी मामले तक सीमित रखा जाए। धार्मिक उन्माद और नफरत के खिलाफ संघर्ष किया जाए। लोकतांत्रिक जनवादी अधिकारों के लिए संघर्ष किया जाए। तभी सही मायने में हम एक बेहतर समाज बना पाएंगे। एक ऐसा समाज (समाजबादी) जिसमें किसी भी तरह का शोषण उत्पीड़न, भेदभाव, गैर बराबरी ना हो। वक्ताओं में मुख्य रूप से कामरेड दुखहरन राम, हरिहर प्रसाद, नरोत्तम यादव, निर्मल प्रधान, फूलमती तथा अन्य लोग शामिल रहे।
