
गौरैयों का मसीहा: खलारी के नंदू मेहता ने पेश की जीव-जगत से प्रेम की अनूठी मिसाल
रांची ।जब इस युग में इंसान और इंसान के बीच रिश्तों की डोर कमजोर होती जा रही है, दूरियाँ बढ़ रही हैं, और स्वार्थ की दीवारें ऊँची होती जा रही हैं — ऐसे समय में रांची जिला केखलारी क्षेत्र अंतर्गत धमधमिया में रहने वाले एक कोल इंडिया में कार्यरत नंदू मेहता ने मानवता और संवेदना की मिसाल पेश की है। उन्होंने अपने प्रेम और समर्पण से उन गौरैया चिड़ियों के जीवन में फिर से उम्मीद की किरण जलाई है, जो अब लगभग विलुप्ति के कगार पर हैं। गौरैया, जिसे कभी हर आंगन की चिड़िया कहा जाता था, आज शहरीकरण, प्रदूषण, मोबाइल टावरों के रेडिएशन और मानवीय उपेक्षा के कारण हमसे दूर हो चुकी है। लेकिन नंदू मेहता ने इन नन्हीं चहचहाती ज़िंदगियों को फिर से जीने का कारण दिया है। लगभग 12 वर्षों से वे अपने घर के आंगन में गौरैयों को नियमित रूप से चावल के दाने और पानी उपलब्ध करा रहे हैं। उनका यह प्रेम केवल दाना-पानी तक सीमित नहीं है, बल्कि अब तो भावनात्मक रिश्ता बन गया है। नंदू बताते हैं कि जब वे घर से बाहर जाते हैं, तो गौरैया बेचैन होकर चारों ओर उड़ती हैं, शोर मचाती हैं, जैसे किसी अपने का इंतज़ार हो। और जब वे लौटते हैं तो जैसे ही आंगन में कदम रखते हैं, गौरैयों की चहचहाहट पूरे वातावरण को जीवंत कर देती है — मानो कह रही हों: “हमारा अपना लौट आया!”आज स्थिति ये है कि सुबह और शाम के समय 100 से अधिक गौरैया उनके घर के सामने पेड़ पर अपना बसेरा बनाती हैं। जैसे ही शाम के चार बजते हैं, चहचहाहट की मधुर ध्वनि से धमधमिया का माहौल गूंज उठता है। नंदू मेहता दाना लेकर बाहर आते हैं और पेड़ से एक-एक कर गौरैयाएं उतरकर उनके आंगन में भरपेट दाना चुगती हैं। फिर शाम के सन्नाटे में वे फिर से पेड़ की शाखाओं पर लौट जाती हैं, अपने भरोसेमंद मित्र की छांव में। सुबह 5 बजे के बाद जैसे ही नंदू मेहता आंगन में निकलते हैं, तो गौरैयों में मानो खलबली मच जाती है — एक अलौकिक मिलन का दृश्य जो सिर्फ देखने वालों के दिल को नहीं, आत्मा को भी छू लेता है।
नंदू मेहता का यह कार्य केवल पक्षी प्रेम नहीं, बल्कि एक जागरूकता है – एक संदेश है कि यदि हम चाहें, तो नन्हें प्राणियों के लिए भी इस धरती को फिर से सुरक्षित और स्नेहमयी बना सकते हैं।

