Sunday, December 14

उत्तराखंड (चमोली)।फूलों की घाटी का जादू फिर बिखरा, पहले ही दिन सैलानियों की लगी भीड़

फूलों की घाटी का जादू फिर बिखरा, पहले ही दिन सैलानियों की लगी भीड़

1जून से 31अक्टूबर तक खुली रहेगी घाटी

(आशुतोष शर्मा)चमोली । जनपद की जून की पहली सुबह, जब पहाड़ों पर धूप हल्के से उतरी और हवा में बर्फ़ की ख़ुशबू घुली, तब एक और ख़ुशबू इन वादियों में तैरने लगी फूलों की। चमोली ज़िले की विश्व प्रसिद्ध “फूलों की घाटी” आज यानी रविवार को पर्यटकों के लिए खोल दी गई। और फिर क्या था, सैलानी उमड़ पड़े।

अब इसे संयोग कहिए या प्रकृति का बुलावा, लेकिन पहले ही दिन 45 सैलानी सुबह-सुबह घाटी के मुख्य गेट पर पहुंच चुके थे, और वन विभाग ने भी उनका स्वागत मुस्कुराकर किया बिना किसी बायोमेट्रिक लाइन या ईवीएम की कतार के। ये वही घाटी है जहां 500 से अधिक फूलों की प्रजातियाँ खिलती हैं रंग जैसे इंद्रधनुष से उतरकर धरती पर बिछ गए हों। और ये कोई मामूली फूल नहीं हैं, इनमें कई तो ऐसे हैं जो देशी भी हैं और विदेशी भी। यानि यहां जैव विविधता भी है और प्राकृतिक सौंदर्य का लोकतंत्र भी।

घाटी 1 जून से 31 अक्टूबर तक खुली रहती है। लेकिन यहां आकर ट्रैक करना कोई Instagram Reel नहीं, ये एक अनुभव है। समुद्र तल से 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये घाटी 87.5 वर्ग किलोमीटर में फैली है। और हां, यूनेस्को ने इसे 2005 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।

पर्यटकों को 4 बजे से पहले घाटी से लौटना होता है क्योंकि प्रकृति भी नियम मांगती है। नियमों का पालन अनिवार्य है, जैसे लोकतंत्र में संविधान। हर साल यहां हजारों लोग आते हैं, जैसे मतदान केंद्रों पर नहीं आते। वे आते हैं फूलों को देखने, अपनी आंखों में रंग भरने, और शायद कुछ पल खुद से मिलने।

तो जब देश की खबरों में विवादों की खटास हो, तब चमोली से आती फूलों की घाटी की ये मीठी ख़बर कुछ राहत देती है। यहां न तो वाद-विवाद होते हैं, न टीवी डिबेट, बस खिलते हैं फूल बिना शोर के, बिना प्रचार के।

और यही ख़बर की खूबसूरती है।

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