Wednesday, December 17

आजमगढ़। पूर्णश्लोक अहिल्याबाई होल्कर त्रिशताब्दी स्मृति अभियान के तहत नगर पालिका सम्मेलन नेहरु हाल में सम्पन्न हुआ।

पूर्णश्लोक अहिल्याबाई होल्कर त्रिशताब्दी स्मृति अभियान के तहत नगर पालिका सम्मेलन नेहरु हाल में सम्पन्न हुआ।

उपेन्द्र पांडेय 

आजमगढ़। अहिल्याबाई होल्कर त्रि- शताब्दी स्मृति अभियान का कार्यक्रम नगर पालिका में संपन्न हुआ।इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में माननीय दारा सिंह चौहान जी (कारागार मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार) मौजूद रहे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि द्वारा महिला सफाई कर्मचारियों को अंगवस्त्र पुष्प गुच्छ व स्वच्छता किट देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि कारागार मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार दारा सिंह चौहान ने कहा कि पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर भारतीय हतिहास की उन महान नारियों में से हैं, जिन्होंने नारी शक्ति, प्रशासनिक दक्षता और धर्म-परायणता का ऐसा अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसकी स्मृति आज भी भारतीय जनमानस में श्रद्धा के साथ अंकित है। 31 मईं, 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जनपद स्थित चांडी ग्राम में जन्मी अहिल्याबाई, प्रारंभ से ही विलक्षण प्रतिभा और प्रखर बुद्धि की धनी थीं। उनके पिता मानकोजी शिदे मराठा साम्राज्य में पाटिल के पद पर कार्यरत थे, जिन्होंने अपनी पुत्री को मर्यादा, नीति और धर्म का संस्कार बचपन से ही दिया। विवाह के उपरांत अहिल्याबाई मालवा राज्य की बहू बनीं और कालांतर में राज्य की महारानी। यह मार्ग सरल न था। युद्ध में पति खांडेराव की मृत्यु. फिर ससुर मल्हारराव का निधन और अंतत: अपने इकलौते पुत्र मालेराव की असामयिक मृत्यु- ये सारे आघात अहिल्याबाई पर एक के बाद एक टूटे, परंतु उन्होंने इन्हें दुर्बलता नहीं, बल्कि दायित्व का आह्वान समझा। 11 दिसम्बर, 1767 को जब उन्हें विधिवत राज्याभिषेक कर राजसिंहासन सौंपा गया, तब उन्होंने न केवल राज्य को स्थायित्व दिया, बल्कि अपनी दूरदृष्टि, न्यायप्रियता और धर्मनिष्ठा से उसे समृद्धि की ओर अग्रसर किया। उनकी न्यायिक व्यवस्था इतनी प्रभावी थी कि प्रजा उन्हें साक्षात धर्म का रूप मानती थी। उन्होंने देशभर में मंदिरों, कुओं, धर्मशालाओं और घाटों का निर्माण करवाया, जिनमें काशी, गया, सोमनाथ, द्वारका, रामेश्वरम् जैसे तीर्थस्थलों का विशेष उल्लेखनीय स्थान है। अहिल्याबाई न केवल धर्मप्रेमी थीं, बल्कि उत्कृष्ट शासक भी- वे सैनिक रणनीति में निपुण थीं, राज्य कीआय-व्यय प्रणाली को व्यवस्थित करती थीं, और महिला सशक्तिकरण की मूर्तिमान प्रेरणा थीं। उनके शासनकाल में मालवा न केवल राजनैतिक रूप सें स्थिर रहा, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नयन का भी केंद्र बना। 13 अगस्त, 1795 को जब अहिल्याबाई इस लोक से विदा हुईं, तब वे अपने पीछे एक ऐसा आदशं राज्य मॉडल छोड़ गई, जिसमें शक्ति, सेवा और संयम का प्रतीक माना जाता है।

इस अवसर पर जिलाध्यक्ष आजमगढ़ सदर ध्रुव कुमार सिंह पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष माला द्विवेदी , श्रीकृष्ण पाल,प्रेम प्रकाश राय, पूनम सिंह ,विभा बर्नवाल, अवनीश मिश्रा अजय सिंह, विवेक निषाद,मृगांक शेखर सिन्हा, संतोष चौहान, धर्मवीर चौहान , अवनीश चतुर्वेदी, शोभित श्रीवास्तव मौजूद रहे।

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