शांभवी धाम कसेसर में श्रीमद्भागवत कथाभारत की सांस्कृतिक धारा समुद्र की तरंगों जैसी – वागीश जी महाराज
संजीव सिंह बलिया। शांभवी धाम कसेसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में अंतर्राष्ट्रीय कथा व्यास वागीश जी महाराज ने अपने अमृत वचनों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत की सांस्कृतिक परंपरा समुद्र की तरंगों के समान अनादि और अनंत है। जैसे तरंगों में उत्थान और पतन आता है, वैसे ही विश्व के सबसे प्राचीन राष्ट्र भारतवर्ष ने भी कभी विश्व गुरु का गौरव पाया तो कभी दासता में भी जकड़ा रहा, किंतु प्रभु की प्रेरणा से भारत ने सदैव आस्था और अध्यात्म से मुक्ति का मार्ग पाया है।उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और चौसठ कलाओं से सम्पन्न भगवान श्रीकृष्ण से प्रेरणा ली है। आज समय की आवश्यकता है कि बच्चों को कार्टून पात्र ‘डोरेमॉन’ और ‘पेपा पिग’ की बजाय भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं दिखलाई जाएं, जिससे उनके जीवन मूल्यों का निर्माण हो।कथा का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने बताया कि जब नंद भवन में जन्मोत्सव की गूंज रही थी, उसी समय पापी कंस की सेना नवजात शिशुओं का वध कर रही थी।
कन्हैया को मारने के लिए मायावी पूतना आयी और गोद में उठाकर विषमिश्रित पयपन कराने लगी, परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने संपूर्ण विष पीकर उसे मुक्त कर दिया और यशोदालाल की तरह दूध का पान भी किया। पूतना का असली राक्षसी रूप प्रकट हुआ और वह मृत्यु को प्राप्त हुई। चूंकि भगवान ने उसका दुग्ध पान किया था, इसलिए उसे वैकुंठ प्राप्ति का सौभाग्य भी मिला।इसके बाद वागीश जी महाराज ने बकासुर और कागासुर वध का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया। आगे कथा में उन्होंने बताया कि किस प्रकार नटखट बालक श्रीकृष्ण की चंचलताओं से परेशान यशोदा मैया ने उन्हें ओखल से बांध दिया। किंतु प्रभु ने उसी ओखल को यमलार्जुन वृक्ष में फंसा कर उखाड़ दिया और शापित आत्माओं का उद्धार कर उन्हें वैकुंठ प्रस्थान कराया।इस आध्यात्मिक आयोजन में शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनन्द स्वरूप, पूर्व मंत्री छट्ठू राम, भाजपा जिला महामंत्री आलोक शुक्ला, आचार्य विकास उपाध्याय, आदर्श तिवारी सहित भारी संख्या में कथा रसिक उपस्थित रहे। ठाकुर जी की भव्य आरती के साथ कथा का विश्राम हुआ।

